नौ दिनों की Navratri के दौरान मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है। हर रूप की अपनी अलग कहानी और वजह है। मंगलवार को नवरात्रि का तीसरा दिन है और यह मां चंद्रघंटा को समर्पित किया गया है, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि मां को यह नाम कैसे और क्यों दिया गया। तो चलिए जानते हैं जगत जननी ने मां चंद्रघंटा (Maa Chandraghanta) का रूप क्यों धरा इसके पीछे की क्या कहानी है।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप कैसे पड़ा।
देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप को चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है। इनकी सवारी शेर है और दस हाथों में कमल और कमडंल के अलावा अस्त्र-शस्त्र हैं। वहीं इनके माथे पर अर्द्ध चंद्र है जो इनकी पहचान है। इने गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्न जड़ित मुकुट विराजमान है।
मां चंद्रघंटा की पूजा क्यू क्या जाता है।
मान्यता है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से मन को शांति और परम शक्ति का अनुभव होता है। यही वजह है कि इनकी puja की जाती है।
मां चंद्रघंटा की कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक देवी Durga ने मां चंद्रघंटा का रूप तब धारण किया था, जब महिषासुर नाम के दैत्य का आतंक स्वर्ग पर बढ़ने लगा था। बहुत समय तक महिषासुर का आंतक और भयंकर युद्ध देवताओं के साथ चल रहा था, क्योंकि महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन हासिल करना चाहता था और स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है। जब देवताओं को इसका पता चला तो सभी परेशान हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे थे।
त्रिदेवों ने जब देवताओं की बात सुनी तो उन्हें बहुत क्रोध आया। कहा जाता है कि इसी क्रोध से त्रिदेवों के मुख से एक ऊर्जा निकली और उसी ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं, जिनका नाम मां चंद्रघंटा है। देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, विष्णुजी ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं और स्वर्ग लोक की रक्षा की hai